किसान भाइयों बहुत पुराने जमाने से एक कहावत चली आ रही है कि कटहल की खेती कभी गरीब नहीं होने देती यानी इसकी खेती से किसान धनी बन जाते हैं।
वैसे तो इसे भारतीय जंगली फल या सब्जी कहा जाता है। इसके अलावा कटहल को मीट का विकल्प कहा जाता है। इसके कारण बहुत से लोग इसे पसंद नहीं करते हैं।
इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को है कि ये कटहल अनेक बीमारियों में फायदा करता है। किसान भाइयों के लिए कटहल की खेती अब लाभकारी हो गयी है।
इसका कारण यह है कि कटहल के कई ऐसी भी किस्में आ गयीं हैं जिनमें साल के बारहों महीने फल लगते हैं। इससे किसानों को पूरे साल कटहल से आमदनी मिलती रहती है।
इसलिये किसानों के लिए कटहल की खेती नकदी फसल की तरह बहुत ही लाभकारी है।
इसके अलावा इसका अचार, पापड़ व जूस भी बनाया जाता है। कटहल का फल तो लाभकारी है और इसकी जड़ भी कई तरह की दवाओं के काम आती है।
रेतीली जमीन में भी इसकी खेती की जा सकती है। समुद्र तल से 1000 मीटर ऊंचाई वाली पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती की जा सकती है। जलभराव वाली जमीन में इसकी खेती से परहेज किया जाता है क्योंकि जलजमाव से कटहल की जड़ें गल जातीं हैं तथा पौधा गिर जाता है।
कटहल की खेती शुष्क एवं शीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में आसानी से की जा सकती है। कटहल की खेती अत्यधिक सर्दी बर्दाश्त नहीं कर पाती है।
दक्षिण भारत में कटहल की खेती अधिक होती है। इसके अलावा असम को कटहल की खेती के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
प्रत्येक थालों के हिसाब से 20 से 25 किलो गोबर की खाद व कम्पोस्ट तथा 250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 500 पोटाश, 1 किलोग्राम नीम की खली तथा 10 ग्राम थाइमेट को डालकर मिट्टी में अच्छी तरह से मिला लें।
दूसरे कलम की पौध नर्सरी से लाकर थाले के बीच एक फूट लम्बे चौड़े और डेढ़ फुट का गहरा गड्ढा बनाकर उसमें लगा देना चाहिये।
सर्दी के मौसम में प्रत्येक 15 दिन में सिंचाई करना आवश्यक होता है। दो से तीन साल तक पौधों की सिंचाई का विशेष ध्यान रखन होता है। जब पेड़ में फूल आने की संभावना दिखे तब सिंचाई नहीं करनी चाहिये।
अगस्त सितम्बर माह में खाद व उर्वरक का प्रबंधन करते रहना चाहिये। इसके अलावा समय-समय पर सिंचाई की भी देखभाल करते रहना चाहिये। इसके अलावा पौधों की बढ़वार के लिए समय-समय पर कांट छांट भी की जानी चाहिये।
जड़ से पांच-छह फीट तक तनों व शाखाओं को काट कर पेड़ को सीधा बढ़ने देना चाहिये। उसके बाद चार-पांच तनों को फैलने देना चाहिये। इस तरह से पेड़ का ढांचा अच्छी तरह से विकसित हो जाता है तो अधिक फल लगते हैं।
प्रत्येक पौधे को 20 से 25 किलोग्राम गोबर की खाद, 100 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 100 ग्राम पोटाश प्रतिवर्ष बरसात के समय देना चाहिये।
जब पौधों की उम्र 10 वर्ष हो जाये तो खाद व उर्वरकों की मात्रा बढ़ा देनी चाहिये। उस समय प्रति पौधे के हिसाब से 80 से 100 किलो तक गोबर की खाद, एक किलोग्राम यूरिया, 2 किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा एक किलो पोटाश देना चाहिये।
1. माहू : कटहल में लगने वाला माहू कीट पत्तियों, टहनियों, फूलों व फलों का रस चूसते हैं। इससे पौधों की बढ़वार रुक जाती है।
जैसे ही इस कीट का संकेत मिले। वैसे ही इमिडाक्लोप्रिट 1 मिलीलीटर को एक लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़काव करें।
2. तना छेदक: इस कीट के नवजात कीड़े कटहल के मोटे तने व डालियों मे छेद बनाकर घुस जात हैं और अंदर ही अंदर पेड़ को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे पेड़ सूखने लगता है तथा फसल पर विपरीत असर पड़ने लगता है।
इसका पता लगते ही पेड़ में दिखने वाले छेद को अच्छी तरह से किसी पतले तार आदि से सफाई करना चाहिये फिर उसमें नुवाक्रान का तनाछेदक घोल 10 मिलीलीटर एक लीटर पेट्रोल या करोसिन में मिलाकर तेल की चार-पांच बूंद रुई में डालकर छेद को गीली चिकनी मिट्टी से बंद कर दें तो लाभ होगा।
3. गुलाबी धब्बा : इस रोग से पत्तियों में नीचे की ओर से गुलाबी रंग का धब्बा बनने लगता है। इसकी रोकथाम के लिए कॉपर जनित फफूंदनाशी कॉपर आक्सीक्लोराइड या ब्लू कॉपर 3 मिली लीटर को प्रति लीटर पानी में मिलकार छिड़काव करना चाहिये।
4. फल सड़न रोग: यह एक फफूंदी रोग। इस रोग के लगने के बाद कोमल फलों के डंठलों के पास धीरे-धीरे सड़ने लगता है।
इसकी रोकथाम के लिए ब्लू कॉपर के 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल का छिड़काव तुरन्त करें और उसके 15 दिन बाद दुबारा छिड़काव करने लाभ मिलता है।
यदि इसके बाद भी लाभ न मिले तो एक बार फिर छिड़काव कर देना चाहिये।
फिर भी जब इसका डंठल तथा डंठल से लगी पत्तियों का रंग बदल जाये यानी हरा से हल्का भूरा या पीला हो जाये और फल के कांटों का नुकीलापन कम हो जाये तब किसी तेज धार वाले चाकू से दस सेंटीमीटर डंठल के साथ तोड़ लेना चाहिये।
यदि फल काफी ऊंचाई से तोड़ रहे हैं तो उसे रस्सी के सहारे नीचे उतारना चाहिये वरना जमीन पर गिर जाने से फल खराब हो सकता है।
यदि अच्छी तरह से देखभाल की जाये तो एक वृक्ष से 4 से 5 क्विंटल कटहल आसानी से पाया जा सकता है। यदि एक हेक्टेयर में 150 से 200 पौधे लगाये गये हैं तो इससे प्रतिवर्ष 3 से 4 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है।
दूसरे वर्ष इसकी फसल में कोई लागत नही लगती है और फसल इससे अधिक होती है।
खेती किसानी को आसान बनाने के लिए ट्रैक्टर अपनी अहम भूमिका निभाता है। इसलिए ट्रैक्टर को किसान का मित्र कहा जाता है।
अगर आप भी कम ईंधन खपत करने वाला शक्तिशाली ट्रैक्टर खरीदना चाहते हैं, तो आपके लिए महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस ट्रैक्टर एक शानदार विकल्प सिद्ध हो सकता है।
क्योंकि, इस Mahindra 585 DI XP PLUS Tractor ट्रैक्टर में 2100 आरपीएम के साथ 49 HP पावर उत्पन्न करने वाला 3054 सीसी इंजन उपलब्ध किया जाता है, जिसे फ्यूल एफिशिएंट टेक्नोलॉजी के साथ तैयार किया गया है।
Mahindra 585 DI XP PLUS Tractor: महिंद्रा कंपनी भारत में अपनी बेहतरीन परफॉर्मेंस वाले ट्रैक्टरों के लिए किसानों के मध्य अलग ही पहचान बनाए हुए है। भारत के ज्यादातर किसान महिंद्रा ट्रैक्टर्स का ही उपयोग करना पंसद करते हैं।
Mahindra 585 DI XP PLUS ट्रैक्टर में आपको 3054 सीसी क्षमता वाला 4 सिलेंडर में ELS Water Cooled इंजन प्रदान किया जाता है, जो 49 HP पावर के साथ 198 NM अधिकतम टॉर्क उत्पन्न करता है।
इस महिंद्रा ट्रैक्टर में 3 Stage Oil Bath Type Pre Air Cleaner टाइप एयर फिल्टर आता है। कंपनी के इस ट्रैक्टर के इंजन से 2100 आरपीएम उत्पन्न होता है।
साथ ही, इसकी अधिकतम पीटीओ पावर 44.9 HP है। महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस की भार उठाने की क्षमता 1800 किलोग्राम है।
Mahindra 585 DI XP PLUS महिंद्रा ट्रैक्टर की फॉरवर्ड स्पीड 30.0 kmph रखी गई है। यह 11.9 km h रिवर्स स्पीड के साथ आता है। एक्सपी प्लस सीरीज वाले इस ट्रैक्टर में आपको 50 लीटर क्षमता वाला ईंधन टैंक प्रदान किया जाता है।
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महिंद्रा के इस एक्सपी प्लस ट्रैक्टर में आपको Manual / Dual Acting Power स्टीयरिंग देखने को मिल जाता है। बतादें, कि इस 49HP ट्रैक्टर में 8 Forward + 2 Reverse गियर वाला गियरबॉक्स उपलब्ध किया गया है।
कंपनी का यह ट्रैक्टर आपको Single / Dual (Optional) क्लच के साथ दिखने को मिल जाता है। साथ ही, इसमें Full Constant Mesh टाइप ट्रांसमिशन प्रदान किया गया है।
Mahindra 585 DI XP PLUS महिंद्रा के इस एक्सपी प्सस ट्रैक्टर में Dry Disc / Oil Immersed ब्रेक्स प्रदान किए गए हैं।
महिंद्रा कंपनी के इस ट्रैक्टर में MRPTO टाइप पावर टेकऑप आती है, जो 540 आरपीएम उत्पन्न करती है। महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस एक 2WD यानी टू व्हील ड्राइव ट्रैक्टर है।
बतादें, कि इसमें 7.50 x 16 फ्रंट टायर एवं 14.9 x 28 रियर टायर प्रदान किए गए हैं।
भारत में Mahindra & Mahindra ने अपने इस Mahindra 585 DI XP PLUS महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस ट्रैक्टर की एक्स शोरूम कीमत 7.00 लाख से 7.30 लाख रुपये निर्धारित की गई है।
585 डीआई एक्सपी प्लस की ऑन रोड़ कीमत समस्त राज्यों में लगने वाले आरटीओ रजिस्ट्रेशन तथा रोड टैक्स की वजह से भिन्न हो सकती है। महिंद्रा 585 डीआई एक्सपी प्लस ट्रैक्टर के साथ कंपनी 6 वर्ष की वारंटी प्रदान करती है।
देश के साथ दुनिया में इन दिनों औषधीय पौधों की खेती की लगातार मांग बढ़ती जा रही है। इनकी मांग में कोरोना के बाद से और ज्यादा उछाल देखने को मिला है क्योंकि लोग अब इन पौधों की मदद से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखना चाहते हैं।
जिसको देखेते हुए केंद्र सरकार ने इस साल 75 हजार हेक्टेयर में औषधीय पौधों की खेती करने का लक्ष्य रखा है। सरकारी अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि पिछले ढ़ाई साल में औषधीय पौधों की मांग में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है जिसके कारण केंद्र सरकार अब औषधीय पौधों की खेती पर फोकस कर रही है।
किसानों को औषधीय पौधों की खेती की तरफ लाया जाए, इसके लिए सरकार अब सब्सिडी भी प्रदान कर रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में औषधीय पौधों की खेती पर राज्य सरकारें भी अलग से सब्सिडी प्रदान कर रही हैं।
इस योजना के अंतर्गत सरकार औषधीय पौधों और जड़ी बूटियों के उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इस मिशन के अंतर्गत सरकार 140 जड़ी-बूटियों और हर्बल प्लांट्स की खेती के लिए अलग-अलग सब्सिडी प्रदान कर रही है।
यदि कोई किसान इसकी खेती करना चाहता है और सब्सिडी के लिए आवेदन करता है तो उसे 30 फीसदी से लेकर 75 फीसदी तक की सब्सिडी प्रदान की जाएगी।
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अगर किसान भाई किसी औषधीय पौधे की खोज रहे हैं तो वह करी पत्ता की खेती कर सकते हैं। करी पत्ता का इस्तेमाल हर घर में मसालों के रूप में किया जाता है।
इसके साथ ही इसका इस्तेमाल जड़ी-बूटी के तौर पर किया जाता है, साथ ही इससे कई प्रकार की दवाइयां भी बनाई जाती हैं। जैसे वजन घटाने की दवाई, पेट की बीमारी की दवाई और एंफेक्शन की दवाई करी पत्ता से तैयार की जाती है।
सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करना चाहिए, इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर दें। इसके बाद हर चार मीटर की दूरी पर पंक्ति में गड्ढे तैयार करें। गड्ढे तैयार करने के बाद बुवाई से 15 दिन पहले गड्ढों में जैविक खाद या गोबर की सड़ी खाद भर दें।
इसके बाद गड्ढों में सिंचाई कर दें। भूमि बुवाई के लिए तैयार है। करी पत्ता के पौधों की रोपाई वैसे तो सर्दियों को छोड़कर किसी भी मौसम में की जा सकती है। लेकिन मार्च के महीने में इनकी रोपाई करना सर्वोत्तम माना गया है।
करी पत्ता की बुवाई बीज के साथ-साथ कलम से भी की जा सकती है। अगर किसान बीजों से बुवाई करने का चयन करते हैं तो उन्हें एक एकड़ में बुवाई करने के लिए करी पत्ता के 70 किलो बीजों की जरूरत पड़ेगी।
यह बीज खेत में किए गए गड्ढों में बोए जाते हैं। इन बीजों को गड्ढों में 4 सेंटीमीटर की गहराई में लगाने के बाद हल्की सिंचाई की जाती है। इसके साथ ही जैविक खाद का भी प्रयोग किया जाता है।